Thursday, July 25, 2019

अल्पेश ठाकोर भाजपा में सामिल: किंग, किंगमेकर या राजनीतिक शतरंज का महज एक प्यादा?, उत्तर भारतीयो के खिलाफ कर चुके है प्रदर्शन

आनंद शुक्ल

भाजपा की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले अल्पेश ठाकोर गुजरात ओबीसी-एससी-एसटी एकता मंच और क्षत्रिय ठाकोर सेना के नाम से राजनीति करते हुए कॉंग्रेस विधायक बने. उसके बाद अब वह पंजे का साथ छोडकर अब भाजपा के साथ जुडनेवाले है. एक तरह से यह भाजपा की पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले अल्पेश ठाकोर की घरवापसी है. लेकिन अल्पेश ठाकोर की यह घरवापसी एक प्यादे के रुप में हो रही है या राजनीति की शतरंज में किंग या किंगमेकर की भूमिका में हो रही है. या तो भाजपा में सामिल होने के बाद अल्पेश ठाकोर राजनीति की शतरंज में “पागल प्यादें” के रुप में अपने आप को प्रस्थापित करेंगे? वैसे तो अल्पेश ठाकोर राजनीति में अपने प्रवेश के पहेले दिन से अपने आप को राष्ट्रीय नेता ही मान रहे है. इस वजह से चर्चा यह भी है कि अल्पेश ठाकोर भाजपा से जुडने के बाद कितने प्यादे, किंग और किंगमेकर्स को “पागल प्यादें” बना के छोडेंगे.


नीतिन पटले फेक्टर की चर्चा-


पाटीदार ओबीसी अनामत आंदोलन और हार्दिक पटेल द्वारा शुरु हुई आरक्षण की मांग के साथ प्रारंभ हुई राजनीति के समय अल्पेश ठाकोरने भी ओबीसी-ठाकोर जाति आधारीत अपनी खुद की राजनीति शरु की थी. हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के राजनीतिक उद्भव के समय नीतिन पटेल फेक्टर की भी बहोत बडे स्तर पर चर्चा थी, क्यूकिं प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेता नीतिन पटेल की शपथविधि के पांच मिनिट पहेले तक मुख्यमंत्री के बनने के बारे में मीडिया में स्त्रोत के आधार पर चर्चाएं चली थी. लेकिन आखरी समय पर नीतिन पटेल के स्थान पर विजय रूपाणी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और उनको उपमुख्यमंत्री बनाया गया. इस उलटफेर के कारण गुजरात भाजपा में आंतरिक समीकरणने अलग दिशा पकड ली थी. इस दिशाने भाजपा की राजनीतिक दशा 2017 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में काफी बुरी कर दी थी. इस विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व की राजनीति के गढ गुजरात में भाजपा को सिर्फ 99 बैठक हासिल हुई. यानि 1995 के बाद गुजरात विधानसभा चुनाव में पहेली बार भाजपा को यहां 100 से कम बैठके हासिल हुई. खैर कॉंग्रेस से भाजपा में सामिल हुए विधायकों के कारण अब यहां उसके विधायकों की संख्या 100 से पार चली गई है. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावो में भाजपा के अंदरुनी समीकरण के राजनीतिक प्रभाव का फायदा कॉंग्रेस ने अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल के माध्यम से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रुप से उठाया था.

शंकर चौधरी अल्पेश ठाकोर के नजदीक आयें-

अल्पेश ठाकोर बेहद महत्वकांक्षी नेता है. लेकिन कॉंग्रेस में उनकी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति नहीं होने के कारण नाराजगी के चलते उनके द्वारा ठाकोर सेना की यात्रा नीकाली गई थी. इस यात्रा के वक्त अल्पेश ठाकोर कॉंग्रेस में ही थे. लेकिन उनकी यात्रा का स्वागत गुजरात भाजपा के दिग्गज नेता और प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तथा अल्पेश ठाकोर की समर्थक गेनीबहेन ठाकोर के द्वारा विधानसभा चुनाव में हारने वाले शंकरभाई चौधरीने किया था. उसके साथ हीं अल्पेश ठाकोर के भाजपा में सामिल होने को लेकर के चर्चाएं प्रारंभ हो चुकी थी. शंकर चौधरी औऱ अल्पेश ठाकोर की बाद में मुलाकात की काफी चर्चा थी. दोनों गेनीबहेन ठाकोर की पुत्री की शादी में भी सामिल हुए थे.


हाला कि शंकर चौधरी 2017 के विधानसभा चुनाव में वाव बैठक पर से गेनीबहन ठाकोर के सामे 6655 मतो से हारे थे. तब राजनीतिक स्तर पर चर्चाएं थी कि शंकर चौधरी फिर से प्रदेश राजनीति में अपने कद का लोहा मनवाने केलिए अल्पेश ठाकोर के नजदीक जाने की कोशिश में थे और उनको अपनी राजनीतिक शतरंज में प्यादा बनाने की कोशिश में हो शक्ते है. शंकर चौधरी इस वक्त गुजरात विधानसभा से बहार है. लेकिन अल्पेश ठाकोर के भाजपा में सामिल होने के बाद उनके मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के प्रधानमंडळ में सामिल होकर फिर से राधनपुर विधानसभा बैठक के उपचुनाव लडेंगे या लोकसभा चुनाव तक राह देखकर शंकर चौधरी को कोई अवसर देना चाहेंगे? यह समग्र राजनीतिक शतरंज में शेह और म्हात के खेल में अल्पेश ठाकोर किंग साबित होंगे या मामूली प्यादे के स्तर पर ही रहेंगे. उस पर राजनीतिक पंडितो की नजर अवश्य रहेगी, क्योंकि शंकर चौधरी भी गुजरात विधानसभा में विधायक के रुप में प्रवेश करना चाहते है. यही नहीं विधायक बनने के बाद शंकर चौधरी रुपाणी सरकार के प्रधानमंडल में बडी जिम्मेदारी भी चाहेंगे और उसके लिए वह कोशिश भी कर रहे है.

अल्पेश ठाकोर फेक्टर को उनके भाजपा प्रवेश से पहेले ही किया गया है बैलेन्स-

अल्पेश ठाकोर के एक वक्त के साथी रहे जुगलजी ठाकोर को राज्यसभा में स्मृति ईरानी के लोकसभा में अमेठी से जीतने के बाद खाली हुई बैठक पर से संसद में भेजा गया है. जुगलजी ठाकोर के राज्यसभा के सदस्य बनाने के घटनाक्रम को अल्पेश ठाकोर के भाजपा प्रवेश से पहेले उनके फैक्टर को संतुलित करने वाला भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का मास्टरस्ट्रोक भी माना जाता है. राज्यसभा के चुनाव के वक्त भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गुजरात आना रुपाणी सरकार के केबिनेट विस्तरण की चर्चाओं के बीच काफी सूचक समजा गया था.

जीतु वाघाणी-प्रदीपसिंह जाडेजा के अपनेअपने राजनीतिक गणित-

गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जीतु वाघाणी की टर्म थोडे समय में पूर्ण होने वाली है. माना जाता है कि वाघाणी रुपाणी सरकार की केबिनेट में सामिल हो शक्ते है और वह उसके लिए प्रयासरत भी है. ऐसी स्थिति में जीतु वाघाणी केलिए अल्पेश ठाकोर जैसे नेता के भाजपा प्रवेश की घटना उनके प्रदेश अध्यक्ष की टर्म की बडी उपलब्धि भी मानी जायेगी. अगर उसे भाजपा नेतृत्व उपलब्धि समजता है, तो वाघाणी को रूपाणी केबिनेट में शायद गृह मंत्रालय या अन्य कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का कारण बने उसकी पुरी संभावना है. हालाकि प्रवर्तमान गृह राज्य मंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा की थोडे समय पहेले ही काफी प्रशंसा की गई है. लेकिन प्रदीपसिंह जाडेजा का थोडे समय पहेला एक ओपरेशन हुआ है और उनकी जिम्मेदारी में परिवर्तन व उनको केबिनेट रेन्क मिलने की संभावना की काफी चर्चा है.

अल्पेश ठाकोर के भाजपा में प्रवेश के पीछे जीतु वाघाणी और प्रदीपसिंह जाडेजा की भूमिका को भी शंकर चौधरी की तुलना में कम नहीं आंका जा शक्ता है. जीतु वाघाणी और प्रदीपसिंह जाडेजा अल्पेश ठाकुर के ‘महेलनुमा’ मकान के वास्तुपूजा के कार्यक्रम में सामिल होकर के उनके भाजपा प्रवेश के बारे में पहेले ही संकेत दे चुके है. एसी स्थिति में गुजरात प्रदेश भाजपा के दोनों दिग्गज नेता भी अल्पेश ठाकोर को अपनी राजनीति की शतरंज का प्यादा मान के तो नहीं चल रहे है ना? यह सवाल भी उठता है.

अल्पेश ठाकोर को रुपाणी केबिनेट में स्थान मिलना कठिन-



अब यह देखना काफी रसप्रद होंगा कि कुंवरजीभाई बावळिया और जवाहर चावडा की तरह अल्पेश ठाकोर को रुपाणी सरकार के केबिनैट में स्थान मिल पाता है की नहीं. हालाकि यह संभावना काफी कमजोर है. अल्पेश ठाकोर के साथ धवलसिंह झाला भी भाजपा का दामन थाम रहे है. हालाकि माना जाता है कि कॉंग्रेस के पांच विधायकों को भाजपा में अल्पेश ठाकोर सामेल करवाते तो उससे उनका राजनीतिक प्रभाव ज्यादा मजबूती से साबित हो शकता था. ऐसी स्थितिमां अल्पेश ठाकोर को भी बावळिया और जवाहर चावडा की तरप रुपाणी केबिनेट में स्थान मिलना ज्यादा तार्किक माना जा शक्ता था.

हालाकि गुजरात के उपमुख्यमंत्री नीति पटेल के साथ राज्यसभा चुनाव से पहेला अल्पेश ठाकोर और धवलसिंह झाला की मुलाकात के बाद चर्चा थी कि दोनों भाजपा में बिना किसी शर्त के सामिल होंगे. राज्यसभा के चुनाव में दोनों ने कॉंग्रेस में रहेते हुए क्रॉस वोटिंग किया औऱ बाद में इस्तीफा देकर उन्होंने स्पष्ट संकेत दिये थे कि वह भाजपा में सामिल होनेवाले है.

‘चाणक्य’ की शतरंज की बाजी में “पागल प्यादा” एक चुनौति से कम नहीं-

अल्पेश ठाकोर की राजनीति ओबीसी और ठाकोर जाति पर आधारीत है. गुजरात में ठाकोर समुदाय उत्तर व मध्य गुजरात में काफी प्रभावी है. ठाकोर समुदाय गुजरात में आठ प्रतिशत है. अगर ओबीसी-क्षत्रिय समुदाय की बात करे, तो यह कुल मिलाकर 48 प्रतिशत के आसपास है. पाटीदार अनामत आंदोलन की काट कुछ लोगों को अल्पेश ठाकोर की ओबीसी राजनीति में दिखती थी. हालाकि अल्पेश ठाकोर की राजनीति बाजपा की हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी राजनीति केलिए गुजरात में चुनौति थी. भाजपा की राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी राजनीति में जाति व भाषा के फैक्टर को गुजरात में घोषित रुप से ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है. अल्पेश ठाकोर द्वारा अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत में पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ बेहद कटु टीप्पणीयां पार्टी के लोगों को अच्छी तरह से याद है. गुजरात में शराबबंदी ठीक से लागु नहीं हो रही है, के तर्क के साथ ठाकोर समुदाय के लोगों को यह दलदल से बहार नीकलाने के नाम पर शुरु हुई अल्पेश ठाकोर की राजनीति उन्हे 2017 में विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस की टिकट पर राधनपुर बैठक पर से विधायक बनने का कारण भी बनी.

अल्पेश ठाकोर अब कह रहे है कि कॉंग्रेस में उनका अपमान हुआ. लेकिन सच्चाई यह भी है कि अल्पेश ठाकोर कोंग्रेस के उस वक्त के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी के बेहद करीबी रहे थे और राहुल गांधीने उन्हें अपनी टीम में स्थान देकर बिहार में पार्टी का सहप्रभारी भी बनाया था. लेकिन साबरकांठा के गांव में एक 14 मास की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ औऱ उसका आरोपी बिहारी था. उसके बाद अल्पेश ठाकोर की ठाकोर सेना पर गुजरात में परप्रांतीय खासकर उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए थे. तब अल्पेश ठाकोर की छबी महाराष्ट्र के राज ठाकरे या शिवसेनानी जैसी राजनीति करने वाले नेता की बन रही थी. और उस के कारण अल्पेश ठाकोर को बिहार में पार्टी के सहप्रभारी के रुप में कॉंग्रेस में कोई बुलाने केलिए तैयार नहीं था. भाजपा ने भी अल्पेश ठाकोर को जरिया बना के कोंग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर घेरने की कोशिश की थी.


लोकसभा चुनाव से पहेला कॉंग्रेस की गुटबाजी के समय भरतसिंह सोलंकी के स्थान पर नये प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की चर्चाओं के बीच में महत्वकांक्षी अल्पेश ठाकोर भी इस पद पर अपनी नजरें गडायें हुए थे. लेकिन उनकी महत्वकांक्षा अमित चावडा के कोंग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के कारण अधुरी ही रह गई. जब अल्पेश ठाकोरने लोकसभा चुनाव के समय पाटण बैठक पर से चुनाव लडने की मनसा भी कोंग्रेस के नेतृत्वने पुरी नहीं होनी दी थी. महत्वकांक्षा पुरी नहीं होने के कारण कॉंग्रेस नेतृत्व के साथ दबाव की राजनीति का खेल अल्पेश ठाकोरने खेलना शुरु कर दिया था. अल्पेश ठाकोर राजनीतिक शतरंज में एक पागल प्यादे के रुप में भी प्रस्थापित होने लगे थे. कॉंग्रेस केलिए भी अल्पेश बोज बनने लगे थे औऱ राहुल गांधीने भी उनसे अंतर बनाना शुरु कर दिया था. इस कारण से कॉंग्रेस में उनकी राजनीतिक हेसियत भी लगातार घटने लगी थी.

यानी महत्वकांक्षाओं की अपूर्ति जिस अल्पेश ठाकोर को कॉंग्रेस से भाजपा में ले आयी है, वह भाजपा में सामिल होने के बाद अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को छोड शक्ते है क्यां? ऐसी स्थितिओं में नीतिन पटेल, शंकर चौधरी, जीतु वाघाणी या प्रदीपसिंह जाडेजा या कोई और, जो अपने किंग बनने कि ईच्छा पाले हुए है, वह अल्पेश को अगर प्यादा समजेंगे तो वह उनकी बडी भूल होंगी. हो शक्ता है कि अल्पेश ठाकोर उनको प्यादा समजने वालों को प्यादा मानते हो या उनको प्यादा बना दे. अल्पेश की ऐसी ही महत्वकांक्षाएं कॉंग्रेस की तरह भाजपा में भी उन्हें राजनीतिक शतरंज के पागल प्यादे के रुप में पहचान पैदा कर शकती है. अब अल्पेश ठाकोर और उनके साथीओं का राजीनीतिक भविष्य भी उनके किंग या प्यादे या पागल प्यादे साबित करनेवाली उनके साथ जुडनेवाली भविष्य की घटनाओं की संभावनाओं से जुडी हुई है. गुजरात की राजनीति में भविष्य की घटनाएं काफी रसप्रद रहेनेवाल है, क्योंकि गुजरात भाजपा में होनेवाले परिवर्तनों में राजनीति के चाणक्य साबित होनेवाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बहोत बडी भूमिका है.

भाजपा केलिए विचारणीय मुद्दे-

इस वक्त भाजपा में पीएम मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के स्थापित, मजबूत और स्थिर नेतृत्व के सामने कोई गुटबाजी के पनपने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. लेकिन अल्पेश ठाकोर औऱ उनके पहेले भाजपा में सामिल होनेवाले कॉंग्रेसीओं को देखते मजबूत भाजपा नेतृत्व केलिए कुछ विचारणीय मुद्दें है. युपीए-1 और युपीए-2 के कार्यकाल में करोडो के गोटालें के बारे में 2014 में चुनाव प्रचार अभियान का मुद्दा था कि सत्ता परिवर्तन के साथ कॉंग्रेस के बहोत से नेता जेल में होंगे. लेकिन कोंग्रेस के नेता जेल में नहीं गये, भाजपा में जरुर से जुड गये. भाजपा इस वक्त भारतीय राजनीति की ऐसी गंगा लग रही है कि उस में सामिल होने वाले राजनेता के सारे पाप धुल जाते है. शायद अल्पेश ठाकोर के भाजपा में सामेल होने से उत्तर भारतीयों के खिलाफ गुजरात में हुए हिंसक प्रदर्शन के कारण बनने का उनका पाप भी धुल जायेगा. कॉंग्रेसीओं के बडी संख्या में भाजपा में सामेल होने के कारण हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी भाजपा की पार्टी विथ डिफरन्स की छबी धुमिल हो रही है और उसका कॉंग्रेसीकरण हो रहा है. कॉंग्रेस में आनेवाले नेताओ को भाजपा में और उसकी सरकार में बडे पद भी दिये जाते है. यह बाद भी भाजपा और उसके साथ जुडे संगठनो के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं है. लेकिन पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के निर्णयों के सामने असंतोष जाहिर करनार उनके बस की बात नहीं है. लेकिन क्यां दुनिया की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी के रुप में भाजपा के आंतरीक लोकतंत्र केलिए यह अच्छी बात होगी?

गुजरात कॉंग्रेस की गुटबजी का रोग क्यां गुजरात भाजपा का भविष्य बनने वाला है? यह सोचने की जरुरत है, क्योंकि गुजरात भाजपा में भी क्षत्रपों की परंपरा खडी होने के संकेत है. वह अपनेअपने समर्थको की भीड जुटाने की भी कोशिश कर रहे है. ऐसी स्थिति में  अल्पेश ठाकोर के भाजपा प्रवेश कोई ऐसे ही क्षत्रप के समर्थकों की भीड बढानेवाली है क्यां? या कॉंग्रेस में से भाजपा में सामिल हुए नेताओं का अलग गुट खडा हो जायेगा? गुजरात भाजप के अंदरुनी स्तर पर आनंदीबहेन पटेल और अमित शाह के समर्थकों की गुटबाजी की चर्चाएं 2014 से लेकर के 2017 तक चरम पर रही थी. तो क्यां गुजरात भाजपा में गुजरात कॉंग्रेस जेसी- भरतसिंह सोलंकी, अर्जुन मोढवाडिया, सिद्धार्थ पटेल, शक्तिसिंह गोहिल- के गुटों जैसी गुटबाजी पैदा हो जायेगी?

हार्दिक पटेल औऱ अल्पेश ठाकोर के राजनीतिक उद्भव को लेकर नीतिन पटेल फैक्टर की चर्चा की प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से होती रहती थी. ऐसी चर्चाएं गुटबाजी के प्रारंभ से पहेले की हो, तो उसमें किसी को आश्चर्य नहीं होनेवाला. लेकिन यह गुजरात भाजपा केलिए जरुर से आश्चर्य की बात होंगी, क्योंकि भाजपा में अटल-अडवाणी युग या मोदी-शाह युग में भी राष्ट्रीय स्तर पर गुटबाजी को लेकर के चर्चाएं नहीं हुई है. भाजपा की राजनीतिक यात्रा में पांच बार केन्द्र में सरकार बनाने की उपलब्धि में गुजरात की भूमिका काफी बडी रही है. तो गुजरात भाजपा में ऐसी कोई भी गुटबाजी की शुरुआत राष्ट्रीय स्तर पर भी कोंग्रेस में से आनेवाले नेता गुजरात भाजपा केलिए कॉंग्रेस की गुटबाजी की राजनीतिक संस्कृति की शरुआत का कारण तो नहीं बनेंगे? गुजरात भाजपा में ऐसी कोई भी गुटबाजी पार्टी विथ डिफरन्स में राष्ट्रीय स्तर पर भी दिशासूचक बनेगी, क्योंकि गत काफी सालों से गुजरात ही राष्ट्रीय राजनीति और भाजपा की राष्ट्रीय दिशा तय करता रहा है.

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